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तो॒के हि॒ते तन॑य उ॒र्वरा॑सु॒ सूरो॒ दृशी॑के॒ वृष॑णश्च॒ पौंस्ये॑। इन्द्रा॑ नो॒ अत्र॒ वरु॑णा स्याता॒मवो॑भिर्द॒स्मा परि॑तक्म्यायाम् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

toke hite tanaya urvarāsu sūro dṛśīke vṛṣaṇaś ca pauṁsye | indrā no atra varuṇā syātām avobhir dasmā paritakmyāyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तो॒के। हि॒ते। तन॑ये। उ॒र्वरा॑सु। सूरः॑। दृशी॑के। वृष॑णः। च॒। पौंस्ये॑। इन्द्रा॑। नः॒। अत्र॑। वरु॑णा। स्या॒ता॒म्। अवः॑ऽभिः। द॒स्मा। परि॑ऽतक्म्यायाम् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:41» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राज विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्रा) ऐश्वर्य्य के देनेवाले राजन् (वरुणा) श्रेष्ठ मन्त्री ! आप दोनों (अत्र) इस प्रजा में (परितक्म्यायाम्) सब ओर से घोड़ा जिसमें उस राज्य में (च) और (उर्वरासु) भूमियों में (सूरः) सूर्य्य के सदृश (हिते) हित के सिद्ध करनेवाले (तोके) शीघ्र उत्पन्न हुए पुत्र (तनये) कुमार (दृशीके) और देखने योग्य (पौंस्ये) पुरुषार्थ के निमित्त (नः) हम लोगों को (वृषणः) बलयुक्त करें तथा (अवोभिः) रक्षा आदि से (दस्मा) दुःख के नाश करनेवाले (स्याताम्) होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। राजपुरुष जैसे ब्रह्माण्ड में सूर्य्य, वैसे प्रजाओं में पिता के सदृश वर्त्ताव कर और चोरों का निवारण करके न्याय से प्रजाओं का पालन करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्रा वरुणा ! भवन्तावत्र परितक्म्यायां चोर्वरासु सूर इव हिते तोके तनये दृशीके पौंस्ये नो वृषणः कुर्वातामवोभिर्दस्मा स्याताम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तोके) सद्यो जातेऽपत्ये (हिते) हितसाधके (तनये) कुमारे (उर्वरासु) भूमिषु (सूरः) सूर्य्यः (दृशीके) द्रष्टव्ये (वृषणः) बलिष्ठान् (च) (पौंस्ये) बले (इन्द्रा) ऐश्वर्य्यदातर्नृप (नः) अस्मान् (अत्र) अस्यां प्रजायाम् (वरुणा) श्रेष्ठसचिव (स्याताम्) (अवोभिः) रक्षणादिभिः (दस्मा) दुःखोपक्षयितारौ (परितक्म्यायाम्) परितस्तक्मानश्वो यस्यां तस्याम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राजपुरुषा ब्रह्माण्डे सूर्य्य इव प्रजासु पितृवद्वर्त्तित्वा चोरान् निवार्य्य न्यायेन प्रजाः पालयेयुः ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा ब्रह्मांडात सूर्य तसे राजपुरुषाने प्रजेमध्ये पित्याप्रमाणे वागावे व चोरांचे निवारण करून न्यायाने प्रजेचे पालन करावे. ॥ ६ ॥